Saturday, 24 August 2013

हिंदुस्तान और दैनिक जागरण की मदद से लाखों लोगों तक पहुंची एल एस कॉलेज की दर्दभरी गूंज

हिंदुस्तान के पटना संस्करण में छपे ब्लॉग के अंश 
दैनिक जागरण के देश भर में छपने वाले सभी अंकों में प्रकाशित ब्लॉग के अंश 

मूल ब्लॉग पढ़ने के लिए पधारे -http://abhi-mat.blogspot.in/2013/07/blog-post_24.html


Wednesday, 7 November 2012

गाँधी के आंदोलन की जन्मभूमि हुई शर्मसार

आज जिस कॉलेज के छात्रों की अश्लील हरकतों से शहर शर्मसार है, उसी लंगट सिंह कॉलेज के हॉस्टल में रह रहे छात्रों से महात्मा गांधी को सत्याग्रह का प्रोत्साहन मिला था। इस कॉलेज के छात्रों ने मुजफ्फरपुर रेलवे जंक्शन से हॉस्टल तक गांधी जी की भव्य अगवानी की थी। चंपारण पहुंचने से दो दिनों तक एलएस कॉलेज (लंगट सिंह कॉलेज) में ठहरे। इस कॉलेज के छात्रों के जोश, समर्पण और सम्मान से गांधी अभिभूत हुए। तब इस कॉलेज का नाम ग्रेयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज था और गांधी जी राष्ट्रपिता या बापू के नाम से मशहूर नहीं हुए थे।

दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट चुके गांधी के मन में अंग्रेज हुकूमत की ज्यादतियों और आम जनता की दुर्दशा बड़ी पीड़ा थी। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका तलाश रहे गांधी ने जब चंपारण में वर्ष 1917 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तो उन्हें राष्ट्रव्यापी पहचान और लोकप्रियता मिली।इतिहासकारों का मानना है कि चंपारण यात्रा के क्रम में जब गांधी पहली बार पटना पहुंचे, तो बिहार के लोगों की फीकी अगवानी से उनके मन में आशंका हुई। जहां के लोगों में गर्मजोशी नहीं, वहां कोई बड़ा आंदोलन कैसे सफल होगा।

एलएस कॉलेज के हॉस्टल में आकर उनकी आशंका दूर हो गई। स्वतंत्रता सेनानी व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी ने अपनी किताब ‘माई टाईम्स’ में गांधी के मुजफ्फरपुर प्रवास पर प्रकाश डाला है। कृपलानी इस कॉलेज में इतिहास के शिक्षक एवं हॉस्टल के अधीक्षक थे। दरभंगा के एक छात्र ने जब गांधी की आरती उतारने और नारियल फोड़कर स्वागत का प्रस्ताव रखा, तो कृपलानी को अच्छा लगा कृपलानी कॉलेज में खुद पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़े।

मुजफ्फरपुर जंक्शन पर गांधी का भव्य स्वागत हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के डर से स्टेशन की सभी बग्घियां व घोड़े हटा दिए गए थे। एक जमींदार की बग्घी में गांधी व कृपलानी बैठे। रास्ते में घोड़े की आवाज नहीं मिली। हॉस्टल पहुंचने पर गांधी को पता चला तक हॉस्टल के छात्र अपने कंधों पर स्टेशन से बग्घी खींच लाए हैं। गांधी ने नाराजगी जतायी, परन्तु छात्रों के जज्बे से गांधी अंदर से प्रभावित हुए। उनके मन में बिहार में आंदोलन की सफलता की उम्मीद जगी।

नहीं रहे कृपलानी जैसे शिक्षक
हॉस्टल के जिन छात्रों से गांधी प्रभावित हुए थे, उनका चारित्रिक विकास आचार्य जेबी कृपलानी जैसे आदर्श शिक्षक के सानिध्य में हुआ था। उन दिनों कॉलेज और हॉस्टल भले ही झोपड़ीनुमा थे, परन्तु शिक्षकों-छात्रों का व्यक्तित्व ऊंचा था। गांधी के सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी स्व. ध्वजा प्रसाद साहू ने तीनमूर्ति भवन में एक साक्षात्कार में कॉलेज हॉस्टल व कृपलानी के ब्रह्मचर्य आश्रम पर प्रकाश डाला था। मात्र 30 रुपये में अपना खर्च पूरा कर आचार्य कृपलानी वेतन का सारा पैसा गरीब छात्रों पर खर्च करते थे।

वे जरूरतमंद छात्रों की नियमित मदद करते थे। उन्होंने छात्रों का चरित्र निर्माण के लिए ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना की और अपने खर्च से संचालन किया। वे छात्रों को तन्मयता से पढ़ाते थे और उनके साथ खेलते थे।
(संपादित आलेख, मूल रचना - विभेष त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, हिंदुस्तान, मुजफ्फरपुर, मूल वेबसाइट लिंक http://t.co/oElabtmZ )

Saturday, 22 September 2012

खंडहर में तब्दील होती एल.एस.कॉलेज परिसर

अस्तित्व बचाने की अपील करती उजड़ते, बिखड़ते और ढहने के कगार पर L.S.कॉलेज की बिल्डिंग....विद्यार्थियों से हरा भरा दिखने वाला कैम्पस आजकल झाड़ियों से ही गुलजार है ...पेड़ ही पेड़ दीखते है समूचे परिसर में....गौर से देखने पर लगता है कि ये पेड़ किसी गैरसरकारी संगठनों द्वारा हरियाली योजना के तहत लगायी गयी है...पेड़ों ने बिल्डिंग को बिल्कुल कमजोर बना दिया है...शायद हलके भूकंप को भी सहने न पाए ...बड़ा सवाल है , लंगट बाबु के स्वप्न और कॉलेज का गौरवशाली अतीत क्या यू ही मिल जाएगी मिट्टी में?


कॉलेज के इसी चारदीवारी के अंदर सिमटी है  गाँधी की यादे 


ख़ामोशी से अपनी बर्बादी के तमाशे देखता कॉलेज का बिल्डिंग 




मवेशियों के चारागाह में बदला कॉलेज का मैदान 


चौकिएगा मत ! यह हॉस्टल के अन्दर का दृश्य है, जहाँ जंगल ही जंगल दिखाई पड़ते है  



अपनी विरासत की दुर्दशा से बेचैन , लेकिन पूरी मजबूती के साथ खड़ा हॉस्टल परिसर का झरना 

यह जंगल नहीं है, न ही प्राचीन खंडहर बल्कि कॉलेज के बीचोबीच के परिसर का दृश्य 








कॉलेज का बगीचा है ..जिसे कई बार गार्डन बनाने की कोशिश तो हुई लेकिन परिणाम आप देख सकते है 


कभी Duke हॉस्टल का यह मेस हुआ करता था, आजकल बैठकी  की जगह है  






हॉस्टल के एक कोने में स्थित यह कमरा, आज भी हमेशा रुलाता, हँसाता रहता है , जीवन के बेहतरीन लम्हों में से एक यहाँ बीते है, जो आज भी अपनी यादों से गुदगुदाता, रुलाता रहता है  


प्रथम वर्ष का कमरा 

दुर्दशा देखिये हॉस्टल को आवंटित खेल मैदान का ....यहाँ सिर्फ सरस्वती पूजा के समय सफाई होती है। 

कॉलेज का डॉ. वागेश्वरी प्रसाद स्मृति उद्यान ....



 फोटो सौजन्य(Photo Courtesy)- अभिषेक रंजन 



  










































स्नेहम 

फोटो सौजन्य(Photo Courtesy)- स्नेहम