बिहार ही नहीं, भारत के
प्रतिष्ठाप्राप्त और जाने-माने महाविद्यालयों में लंगट सिंह महाविद्यालय
(एल.एस.कॉलेज) का नाम शुमार होता है। अपनी गौरवपूर्ण शैक्षणिक सेवाओं से
देश और समाज के परिवेश में ज्ञान-विज्ञान की अखंड ज्योति जलाने वाला यह
कॉलेज अनेक महापुरुषों की कर्मस्थली रही है। ऐसे ही महापुरषों में स्वतंत्र
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे जिनकी योग्यता और
कार्यकुशलता से कॉलेज की मिटटी सिंचित हुई थी तथा ज्ञान की पिपासा शांत हुई
थी।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद उच्चकोटि के विद्वान और कुशल संगठनकर्ता थे। अपने त्यागमय, पवित्र आचरण और आरंभ से ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सोच-विचार के जीवन शैली जिनेवालें राजेंद्र बाबु आजीवन मर्यादित जीवन जीकर समाज के लिए आदर्श स्थापित किया । वे महात्मा गाँधी के लिए आदर्श शिष्य, शिक्षकों के लिए आदर्श नेतृत्वकर्ता और देशवासियों के लिए आदर्श नेता के रूप में सर्वप्रिय थे । वे प्रतिभा, शक्ति और सेवा के अद्भुत विलक्षण योग थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से एल.एस.कॉलेज, मुजफ्फरपुर भी लाभान्वित हुआ। वे न केवल महाविद्यालय के शिक्षक के रूप में रहे बल्कि प्राचार्य के रूप में भी महाविद्यालय की सेवा की।
"बिहार रत्न" बाबु लंगट सिंह के अंतर्मन में बिहार की सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों को सुधारने के लिए प्रस्फुटित और एल.एस.कॉलेज के रूप में अंकुरित बीज आज जिस रूप में खड़ा है उसके पीछे राजेंद्र बाबु की महत्ती भूमिका है।
जनवरी, 1908 ई.में राजेंद्र बाबु कलकत्ता विश्विद्यालय से ऊँची श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा पास करके जुलाई में इस कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए थे। 3 जुलाई, 1899 को वैशाली और मिथिला की संधिभूमि मुजफ्फरपुर में अवस्थित महाविद्यालय अपने प्रारंभिक दस वर्षों तक सरैयागंग के निजी भवन में चलता था। यह कॉलेज उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बंधित था तथा समय समय पर कॉलेज के निरिक्षण हेतु विश्वविद्यालय से लोग आते रहते थे ।
एक समय कॉलेज के निरिक्षण हेतु जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग के प्रो. डॉ. बहुल आए तब उन्होंने इस बात पर बहुत ही नाराज़गी जताई कि कॉलेज के वर्ग दुकानों के आस-पास के कमरों में चल रहे थे। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में ज़मीन और भवन की व्यवस्था पर जोर दिया था। कॉलेज के भवन सम्बन्धी शिकायत से राजेंद्र बाबु को बड़ी चोट पहुंची। उन्होंने अपने कॉलेज के अन्य शिक्षक साथियों से चर्चा के बाद कॉलेज के लिए जगह की तलाश करने लगे। जगह तलाशने करते समय उनके साथ धर्म भूषण चौधरी, रघुनन्दन सिंह भी थे। अंततः खबड़ा गाँव के ज़मींदारों की मदद से उन्हें वर्तमान जगह मिल गयी और कॉलेज सरैयागंज़ से वर्तमान स्थल स्थानांतरित हो गयी ।
1960 ई. में कॉलेज की स्थापना के हीरक जयंती अवसर पर उन्होंने कॉलेज भवन के लिए जगह चुनने सम्बन्धी यादों को साझा भी किया था जो आज भी एल एस कॉलेज के पुस्तकालय में उपलब्ध है। कॉलेज के डायमंड जुबली सोवेनीयर में राजेंद्र प्रसाद ने अपने संस्मरण में लिखा है कि;
डॉ. राजेंद्र प्रसाद उच्चकोटि के विद्वान और कुशल संगठनकर्ता थे। अपने त्यागमय, पवित्र आचरण और आरंभ से ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सोच-विचार के जीवन शैली जिनेवालें राजेंद्र बाबु आजीवन मर्यादित जीवन जीकर समाज के लिए आदर्श स्थापित किया । वे महात्मा गाँधी के लिए आदर्श शिष्य, शिक्षकों के लिए आदर्श नेतृत्वकर्ता और देशवासियों के लिए आदर्श नेता के रूप में सर्वप्रिय थे । वे प्रतिभा, शक्ति और सेवा के अद्भुत विलक्षण योग थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व से एल.एस.कॉलेज, मुजफ्फरपुर भी लाभान्वित हुआ। वे न केवल महाविद्यालय के शिक्षक के रूप में रहे बल्कि प्राचार्य के रूप में भी महाविद्यालय की सेवा की।
"बिहार रत्न" बाबु लंगट सिंह के अंतर्मन में बिहार की सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों को सुधारने के लिए प्रस्फुटित और एल.एस.कॉलेज के रूप में अंकुरित बीज आज जिस रूप में खड़ा है उसके पीछे राजेंद्र बाबु की महत्ती भूमिका है।
जनवरी, 1908 ई.में राजेंद्र बाबु कलकत्ता विश्विद्यालय से ऊँची श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा पास करके जुलाई में इस कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए थे। 3 जुलाई, 1899 को वैशाली और मिथिला की संधिभूमि मुजफ्फरपुर में अवस्थित महाविद्यालय अपने प्रारंभिक दस वर्षों तक सरैयागंग के निजी भवन में चलता था। यह कॉलेज उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बंधित था तथा समय समय पर कॉलेज के निरिक्षण हेतु विश्वविद्यालय से लोग आते रहते थे ।
एक समय कॉलेज के निरिक्षण हेतु जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग के प्रो. डॉ. बहुल आए तब उन्होंने इस बात पर बहुत ही नाराज़गी जताई कि कॉलेज के वर्ग दुकानों के आस-पास के कमरों में चल रहे थे। उन्होंने अपने प्रतिवेदन में ज़मीन और भवन की व्यवस्था पर जोर दिया था। कॉलेज के भवन सम्बन्धी शिकायत से राजेंद्र बाबु को बड़ी चोट पहुंची। उन्होंने अपने कॉलेज के अन्य शिक्षक साथियों से चर्चा के बाद कॉलेज के लिए जगह की तलाश करने लगे। जगह तलाशने करते समय उनके साथ धर्म भूषण चौधरी, रघुनन्दन सिंह भी थे। अंततः खबड़ा गाँव के ज़मींदारों की मदद से उन्हें वर्तमान जगह मिल गयी और कॉलेज सरैयागंज़ से वर्तमान स्थल स्थानांतरित हो गयी ।
1960 ई. में कॉलेज की स्थापना के हीरक जयंती अवसर पर उन्होंने कॉलेज भवन के लिए जगह चुनने सम्बन्धी यादों को साझा भी किया था जो आज भी एल एस कॉलेज के पुस्तकालय में उपलब्ध है। कॉलेज के डायमंड जुबली सोवेनीयर में राजेंद्र प्रसाद ने अपने संस्मरण में लिखा है कि;
"उनके कार्यकाल में सरैयागंज़ स्थित मकान के दो-चार कमरों में कॉलेज चलता था और विज्ञानं की कक्षाए तब नहीं लगती थी ।"
कई दशाब्दी बाद कॉलेज में जब राजेंद्र बाबु आए तो इस कॉलेज के नव निर्मित भवन को देखकर उन्हें अतीव प्रसन्नता हुई थी ।
युवा राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात बाबु लंगट सिंह से कैसे हुई , यह भी कॉलेज के लिए सुखद प्रसंग है। राजेंद्र प्रसाद तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मेधावी छात्र के रूप में विख्यात थे। उन दिनों वे वहां पर पढने वालें बिहारी छात्रों के संगठन के लोकप्रिय नेता भी थे। सच तो यही है कि यही से समाज और देश सेवा की प्रेरणा उन्हें मिली। बाबु लंगट सिंह की ठेकेदारी का काम तब बंगाल में खूब चल रहा था। उन्होंने वही राजेंद्र बाबु की ख्याति सुनी थी ।
लंगट बाबू कॉलेज के लिए योग्य शिक्षक की तलाश में थे। उन्होंने राजेंद्र बाबू से संपर्क बढ़ाया। जब घनिष्ठता बढ़ गई तो लंगट बाबू ने राजेंद्र प्रसाद के सामने कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
बाबु लंगट सिंह और राजेंद्र बाबु दोनों के ह्रदय में देश की सेवा-भावना का अंकुर कलकत्ता में ही फूटा था। बाबु लंगट सिंह का शिक्षक के रूप में राजेंद्र बाबू का चयन कितना सटीक था, यह तो अखिल भारतीय स्तर पर राजेंद्र बाबू के जीवन के भावी उत्कर्ष से प्रमाणित हो जाता है । कॉलेज छोड़ने के बाद वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे तथा बाद के वर्षों में कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी चुने गये। वे स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी निर्वाचित हुए।
कहा जाता है की जब दो महापुरुष एक साथ एक महान उदेश्य के लिए इकठ्ठा होते है तब वह विलक्षण रूप में फलीभूत होता है । ऐसा ही हुआ था जब भारत रत्न राजेंद्र बाबू और बिहार रत्न बाबू लंगट सिंह की जोड़ी कॉलेज के माध्यम से देश और समाज के लिए एक साथ विचार और कर्म किए थे।
युवा राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात बाबु लंगट सिंह से कैसे हुई , यह भी कॉलेज के लिए सुखद प्रसंग है। राजेंद्र प्रसाद तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मेधावी छात्र के रूप में विख्यात थे। उन दिनों वे वहां पर पढने वालें बिहारी छात्रों के संगठन के लोकप्रिय नेता भी थे। सच तो यही है कि यही से समाज और देश सेवा की प्रेरणा उन्हें मिली। बाबु लंगट सिंह की ठेकेदारी का काम तब बंगाल में खूब चल रहा था। उन्होंने वही राजेंद्र बाबु की ख्याति सुनी थी ।
लंगट बाबू कॉलेज के लिए योग्य शिक्षक की तलाश में थे। उन्होंने राजेंद्र बाबू से संपर्क बढ़ाया। जब घनिष्ठता बढ़ गई तो लंगट बाबू ने राजेंद्र प्रसाद के सामने कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
बाबु लंगट सिंह और राजेंद्र बाबु दोनों के ह्रदय में देश की सेवा-भावना का अंकुर कलकत्ता में ही फूटा था। बाबु लंगट सिंह का शिक्षक के रूप में राजेंद्र बाबू का चयन कितना सटीक था, यह तो अखिल भारतीय स्तर पर राजेंद्र बाबू के जीवन के भावी उत्कर्ष से प्रमाणित हो जाता है । कॉलेज छोड़ने के बाद वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे तथा बाद के वर्षों में कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी चुने गये। वे स्वाधीन भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी निर्वाचित हुए।
कहा जाता है की जब दो महापुरुष एक साथ एक महान उदेश्य के लिए इकठ्ठा होते है तब वह विलक्षण रूप में फलीभूत होता है । ऐसा ही हुआ था जब भारत रत्न राजेंद्र बाबू और बिहार रत्न बाबू लंगट सिंह की जोड़ी कॉलेज के माध्यम से देश और समाज के लिए एक साथ विचार और कर्म किए थे।
भले ही राजेंद्र प्रसाद कुछ ही वर्षों के लिए शिक्षण का कार्य किया, लेकिन जबतक कॉलेज में रहे, विद्यार्थियों के मन-मंदिर में बसे रहे। महाविद्यालय के वर्तमान व पूर्व छात्र उनके कार्यकाल को याद करके आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस करते है। आज भी महाविद्यालय की गरिमा राजेंद्र बाबु के नाम से बढती है ।
wow gud 2 know so much things about Legend LS COLLEGE
ReplyDeleteलंगट सिंह कालेज के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में जान कर अच्छा लगा। मुझे यह अभी पता चला है कि राजेंद्र् बाबू यहाँ के भूतपूर्व अध्यापक रह चुके हैं। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मैं मुजफ्फरपुर का वासी हुँ।
ReplyDeleteSabhi dosto Se request h k plz is ko jyada se jyada share kre. Sharm ki bat h unke jayanti par bhi kisi ne koi post tak ni dala. Gandhi, Nehru, Patel,bose, Indira ko to chhodiy sale tuchche muchche hero heroin ka birthday pe post dalte h lekin aaj koi post nhi. Shame.
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