आज जिस कॉलेज के छात्रों की अश्लील हरकतों से
शहर शर्मसार है, उसी लंगट सिंह कॉलेज के हॉस्टल में रह रहे छात्रों से
महात्मा गांधी को सत्याग्रह का प्रोत्साहन मिला था। इस कॉलेज के छात्रों ने
मुजफ्फरपुर रेलवे जंक्शन से हॉस्टल तक गांधी जी की भव्य अगवानी की थी।
चंपारण पहुंचने से दो दिनों तक एलएस कॉलेज (लंगट सिंह कॉलेज) में ठहरे। इस
कॉलेज के छात्रों के जोश, समर्पण और सम्मान से गांधी अभिभूत हुए। तब इस
कॉलेज का नाम ग्रेयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज था और गांधी जी राष्ट्रपिता या
बापू के नाम से मशहूर नहीं हुए थे।
दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट चुके गांधी के मन में अंग्रेज हुकूमत की ज्यादतियों और आम जनता की दुर्दशा बड़ी पीड़ा थी। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका तलाश रहे गांधी ने जब चंपारण में वर्ष 1917 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तो उन्हें राष्ट्रव्यापी पहचान और लोकप्रियता मिली।इतिहासकारों का मानना है कि चंपारण यात्रा के क्रम में जब गांधी पहली बार पटना पहुंचे, तो बिहार के लोगों की फीकी अगवानी से उनके मन में आशंका हुई। जहां के लोगों में गर्मजोशी नहीं, वहां कोई बड़ा आंदोलन कैसे सफल होगा।
एलएस कॉलेज के हॉस्टल में आकर उनकी आशंका दूर हो गई। स्वतंत्रता सेनानी व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी ने अपनी किताब ‘माई टाईम्स’ में गांधी के मुजफ्फरपुर प्रवास पर प्रकाश डाला है। कृपलानी इस कॉलेज में इतिहास के शिक्षक एवं हॉस्टल के अधीक्षक थे। दरभंगा के एक छात्र ने जब गांधी की आरती उतारने और नारियल फोड़कर स्वागत का प्रस्ताव रखा, तो कृपलानी को अच्छा लगा कृपलानी कॉलेज में खुद पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़े।
मुजफ्फरपुर जंक्शन पर गांधी का भव्य स्वागत हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के डर से स्टेशन की सभी बग्घियां व घोड़े हटा दिए गए थे। एक जमींदार की बग्घी में गांधी व कृपलानी बैठे। रास्ते में घोड़े की आवाज नहीं मिली। हॉस्टल पहुंचने पर गांधी को पता चला तक हॉस्टल के छात्र अपने कंधों पर स्टेशन से बग्घी खींच लाए हैं। गांधी ने नाराजगी जतायी, परन्तु छात्रों के जज्बे से गांधी अंदर से प्रभावित हुए। उनके मन में बिहार में आंदोलन की सफलता की उम्मीद जगी।
नहीं रहे कृपलानी जैसे शिक्षक
हॉस्टल के जिन छात्रों से गांधी प्रभावित हुए थे, उनका चारित्रिक विकास आचार्य जेबी कृपलानी जैसे आदर्श शिक्षक के सानिध्य में हुआ था। उन दिनों कॉलेज और हॉस्टल भले ही झोपड़ीनुमा थे, परन्तु शिक्षकों-छात्रों का व्यक्तित्व ऊंचा था। गांधी के सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी स्व. ध्वजा प्रसाद साहू ने तीनमूर्ति भवन में एक साक्षात्कार में कॉलेज हॉस्टल व कृपलानी के ब्रह्मचर्य आश्रम पर प्रकाश डाला था। मात्र 30 रुपये में अपना खर्च पूरा कर आचार्य कृपलानी वेतन का सारा पैसा गरीब छात्रों पर खर्च करते थे।
वे जरूरतमंद छात्रों की नियमित मदद करते थे। उन्होंने छात्रों का चरित्र निर्माण के लिए ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना की और अपने खर्च से संचालन किया। वे छात्रों को तन्मयता से पढ़ाते थे और उनके साथ खेलते थे।
(संपादित आलेख, मूल रचना - विभेष त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, हिंदुस्तान, मुजफ्फरपुर, मूल वेबसाइट लिंक http://t.co/oElabtmZ )
दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट चुके गांधी के मन में अंग्रेज हुकूमत की ज्यादतियों और आम जनता की दुर्दशा बड़ी पीड़ा थी। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका तलाश रहे गांधी ने जब चंपारण में वर्ष 1917 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तो उन्हें राष्ट्रव्यापी पहचान और लोकप्रियता मिली।इतिहासकारों का मानना है कि चंपारण यात्रा के क्रम में जब गांधी पहली बार पटना पहुंचे, तो बिहार के लोगों की फीकी अगवानी से उनके मन में आशंका हुई। जहां के लोगों में गर्मजोशी नहीं, वहां कोई बड़ा आंदोलन कैसे सफल होगा।
एलएस कॉलेज के हॉस्टल में आकर उनकी आशंका दूर हो गई। स्वतंत्रता सेनानी व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी ने अपनी किताब ‘माई टाईम्स’ में गांधी के मुजफ्फरपुर प्रवास पर प्रकाश डाला है। कृपलानी इस कॉलेज में इतिहास के शिक्षक एवं हॉस्टल के अधीक्षक थे। दरभंगा के एक छात्र ने जब गांधी की आरती उतारने और नारियल फोड़कर स्वागत का प्रस्ताव रखा, तो कृपलानी को अच्छा लगा कृपलानी कॉलेज में खुद पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़े।
मुजफ्फरपुर जंक्शन पर गांधी का भव्य स्वागत हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के डर से स्टेशन की सभी बग्घियां व घोड़े हटा दिए गए थे। एक जमींदार की बग्घी में गांधी व कृपलानी बैठे। रास्ते में घोड़े की आवाज नहीं मिली। हॉस्टल पहुंचने पर गांधी को पता चला तक हॉस्टल के छात्र अपने कंधों पर स्टेशन से बग्घी खींच लाए हैं। गांधी ने नाराजगी जतायी, परन्तु छात्रों के जज्बे से गांधी अंदर से प्रभावित हुए। उनके मन में बिहार में आंदोलन की सफलता की उम्मीद जगी।
नहीं रहे कृपलानी जैसे शिक्षक
हॉस्टल के जिन छात्रों से गांधी प्रभावित हुए थे, उनका चारित्रिक विकास आचार्य जेबी कृपलानी जैसे आदर्श शिक्षक के सानिध्य में हुआ था। उन दिनों कॉलेज और हॉस्टल भले ही झोपड़ीनुमा थे, परन्तु शिक्षकों-छात्रों का व्यक्तित्व ऊंचा था। गांधी के सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी स्व. ध्वजा प्रसाद साहू ने तीनमूर्ति भवन में एक साक्षात्कार में कॉलेज हॉस्टल व कृपलानी के ब्रह्मचर्य आश्रम पर प्रकाश डाला था। मात्र 30 रुपये में अपना खर्च पूरा कर आचार्य कृपलानी वेतन का सारा पैसा गरीब छात्रों पर खर्च करते थे।
वे जरूरतमंद छात्रों की नियमित मदद करते थे। उन्होंने छात्रों का चरित्र निर्माण के लिए ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना की और अपने खर्च से संचालन किया। वे छात्रों को तन्मयता से पढ़ाते थे और उनके साथ खेलते थे।
(संपादित आलेख, मूल रचना - विभेष त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, हिंदुस्तान, मुजफ्फरपुर, मूल वेबसाइट लिंक http://t.co/oElabtmZ )