Saturday 21 April 2012

तस्वीरों से कॉलेज की यात्रा

कॉलेज की यात्रा तस्वीरों के माध्यम से करने में इसकी भव्यता, इसकी विशालता, समृद्ध इतिहास और प्रेरणादायी विरासत पर गर्व करने का मौका मिलता है . तो फिर आईये आपको करवाते है यह यात्रा ....




L.S.College Building(Front Side, Office)


College Garden
 
Statute of Langat Babu


Relics of Ancient Scientific Research Centre

You can see Old fan in whole campus
Building on the brink of collapse


College Auditorium
 

Beautiful Natural Seen from college gate


Gandhi ji statute

 charming and grand entrance  of the College

Pariwartan-2020 team on the eve of 100th death aniversary of Langat Babu

College Garden inside Mathematics Department


L.S.College Logo

Function organised on the occasion of 26th January, 2009
L.S.College, A Red- Fort of Muzaffarpur 

Tuesday 17 April 2012

लंगट बाबु के 100 वी पुण्यतिथि


प्रभात खबर 

बाबू लंगट सिंह की पुण्यतिथि पर जुटेंगे वर्तमान व पुराने छात्र

मुजफ्फरपुर। १५ अप्रैल, २०१२। बाबू लंगट सिंह की 100 वीं  पुण्यतिथि पर परिवर्तन-2020 मंच की ओर से रविवार को एलएस कॉलेज में एक भव्य समारोह का आयोजन किया जायेगा. इसमें कॉलेज के वर्तमान व पुराने छात्र शिरकत करेंगे. यह जानकारी संस्था के संयोजक अभिषेक रंजन ने शनिवार को दी. उन्होंने बताया कि समारोह में एलएस कॉलेज को राष्ट्रीय धरोहर बनाने के लिए पहल की योजना बनायी जायेगी. समारोह में मंच के सक्रिय सदस्य जेएनयू के संदीप कुमार सिंह, बीएचयू के पार्थसारथी व हामिद, एलएस कॉलेज के केशरीनंदन शर्मा सहित अन्य सदस्य हिस्सा लेंगे. 


शिक्षा के अग्रदूत थे लंगट बाबू
संवाददाता । १६ अप्रैल, 2012 
लंगट सिंह कॉलेज के संस्थापक व शिक्षा प्रेमी बाबू लंगट सिंह की सौंवी पुण्यतिथि  कॉलेज परिसर में धूमधाम के साथ मनायी गयी. इस दौरान कॉलेज की प्राचार्या डॉ सुनीति पांडेय के नेतृत्व में शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के अलावे कॉलेज के वर्तमान व पूर्व छात्रों ने परिसर में निर्मित लंगट सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. सभा की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्या डॉ पांडेय ने छात्रों से लंगट बाबू के विचारों को अपने जीवन में उतारने की बात कही. मौके पर उन्होंने लंगट बाबू की 100 वीं  पुण्यतिथि  को संकल्प दिवस बताते हुए सालों भर विभित्र कार्यक्रमों के आयोजन की घोषणा की. इतिहास विभाग के प्राध्यापक डॉ गजेंद्र कुमार ने बाबू लंगट सिंह के जीवन वृत सुनाते हुए उन्हें शिक्षा प्रेमी व जिले में नवजागरण काल में शिक्षा का अग्रदूत बताया. सभा को वनस्पति विभाग के अध्यक्ष डॉ अनिल कुमार, अर्थशास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ नवल किशोर प्रसाद सिंह, डॉ विनोद शंकर झा, डॉ विजय कुमार, डॉ जयकांत सिंह, डॉ नित्यानंद शर्मा, डॉ शशि कुमारी, डॉ अनिल कुमार, डॉ रणधीर कुमार सिन्हा, विजय कुमार, डॉ कौशल किशोर चौधरी, आनंद कुमार सिंह सहित अन्य गण्यमान्य लोगों ने भी संबोधित किया.

एलएस कॉलेज के पूर्व व वर्तमान छात्रों ने परिवर्तन-2020 के बैनर तले लंगट सिंह की  पुण्यतिथि मनायी. मौके पर छात्रों ने कॉलेज को राष्ट्रीय धरोहर बनाने व उसकी पुरानी गरिमा लौटाने का संकल्प लिया. छात्रों ने आगामी संकल्प दिवस के अवसर पर कॉलेज में पढकर आज देश भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी बुलाने का निर्णय लिया गया. समारोह में परिवर्तन-2020 के संयोजक अभिषेक रंजन के अलावे राजन, आकर्ष, बालेंद्र, रवि, कुणाल, असित, रणवीर, स्नेहम सहित अन्य सदस्यों ने भाग लिया.

दैनिक जागरण 

एलएस कॉलेज का होगा उद्धार 
मुजफ्फरपुर। १५ अप्रैल, 2012: अपने गौरवशाली अतीत को समेटे एलएस कॉलेज आज चुनौतियों से जूझ रहा है। इसे वही गौरव दिलाने के लिए कॉलेज के पूर्ववर्ती छात्रों ने बीड़ा उठाया है। इसके लिए सोशल नेटवर्किंग का भी सहारा लिया जा रहा है। परिवर्तन 2020, पूर्व छात्र नामक क्लब बनाकर कॉलेज के पूर्ववर्ती छात्रों को इस मुहिम से जोड़ा जा रहा है। क्लब के संयोजक अभिषेक रंजन ने बताया कि अब तक करीब 150 पूर्व छात्र इससे जुड़ चुके हैं। कॉलेज में स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए क्या किया जा सकता है, इसके लिए नए विचारों, सोच और चर्चा सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से किया जा रहा है। 

संकल्प दिवस के रूप में मनेगी सौवीं पुण्यतिथि
मुजफ्फरपुर। 15 अप्रैल, 2012: बाबू लंगट सिंह की सौवीं पुण्यतिथि को संकल्प दिवस के रूप में मनाया जाएगा। रविवार को एलएस कॉलेज के वर्तमान और पूर्व छात्र-छात्राएं इस आयोजन में शामिल होंगे। वहीं प्राचार्या डॉ. सुनीति पांडेय समेत कॉलेज परिवार की ओर से लंगट सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया जाएगा।

दूरद्रष्टा थे लंगट बाबू : डॉ. पांडेय

Updated on: Mon, 16 Apr 2012 01:08 AM (IST)




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दूरद्रष्टा थे लंगट बाबू : डॉ. पांडेय
मुजफ्फरपुर, कासं : शिक्षित समाज से न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य भी सुरक्षित रहता है। इस मूल वाक्य को समझते हुए ही बाबू लंगट सिंह ने एलएस कॉलेज का निर्माण किया था।
ये बातें एलएस कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सुनीति पांडेय ने बाबू लंगट सिंह की सौवीं पुण्यतिथि पर कही। कॉलेज के भौतिकी विभाग में उनकी स्मृति में रविवार को विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता करते हुए डॉ. पांडेय ने कहा कि यह कॉलेज विद्या और क्रांति की हृदयस्थली है। उन्होंने कहा कि लंगट बाबू की सौवीं पुण्यतिथि को संकल्प दिवस के रूप में मनाते हुए पूरे वर्ष कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ. भोज नंदन प्रसाद सिंह ने मन, वचन और कर्म से एक होकर एलएस कॉलेज को राष्ट्रीय पटल पर लाने की बात कही। इतिहास के ही प्राध्यापक डॉ. गजेंद्र ने कहा कि कॉलेज में फिर से शैक्षणिक वातावरण तैयार करना ही लंगट सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। डॉ. नवल किशोर ने सबों को बाबू लंगट सिंह के मार्ग पर चलने को कहा। डॉ. शशि कुमारी सिंह ने कहा कि गौरवशाली अतीत पर अपनी पीठ थपथपाना ठीक है। मगर, वर्तमान की भी समीक्षा होनी चाहिए। डॉ. नित्यानंद शर्मा ने कहा कि लंगट बाबू ने जीवन की तीनों गति दान, भोग और नाश का उपयोग किया और इसलिए वे अमर हो गए। व्याख्यानमाला को डॉ. विजय कुमार, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. जयकांत सिंह जय, डॉ. कौशल किशोर चौधरी, वाल्मीकि शर्मा आदि ने भी संबोधित किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन भौतिकी विभागाध्यक्ष डॉ. रणधीर ने की।
इससे पहले कॉलेज परिवार की ओर से बाबू लंगट सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इसमें कॉलेज के कई पूर्ववर्ती छात्र भी मौजूद थे, देश के विभिन्न विवि में पढ़ रहे हैं और कई विभिन्न जगहों पर कार्यरत हैं। परिवर्तन-2020 मंच के बैनर तले पूर्ववर्ती छात्रों ने एलएस कॉलेज को राष्ट्रीय धरोहर बनाने व पुरानी गरिमा वापस दिलाने का संकल्प लिया। लंगट बाबू की सौवीं पुण्यतिथि को संकल्प दिवस के रूप में मनाते हुए कॉलेज के सभी पूर्ववर्ती छात्रों को बैनर से जोड़ने की योजना बनाई गई। मंच के संयोजक अभिषेक रंजन, राजन, आकर्ष, बालेंद्र, रवि, कुणाल, आसित, रणवीर, स्नेहम आदि माल्यार्पण करने वालों में शामिल थे।



Monday 16 April 2012

लंगट बाबु के 100 वी पुण्यतिथि पर पूर्व छात्रों के सन्देश

मो. हामिद
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
पूर्व छात्र- एल.एस. कॉलेज

एल.एस.कॉलेज में पढाई के दिनों की सुनहरे यादों को दिल में समेटे , मैं हामिद अपने ऐतिहासिक कॉलेज की गरिमा बढ़ाने को ले बहने वाले परिवर्तन की बयार से बेहद खुश हूँ| अपने कॉलेज के लिए कुछ करने की तमन्ना अपने दिल में लिए, मैं इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए काफी अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

गिरते शैक्षणिक माहौल और कैम्पस में बढती अराजकता जैसे माहौल को सुधारने की बहुत ज्यादा जरुरत है| अभिषेक भैया का कॉलेज को " राष्ट्रीय धरोहर" के रूप में विकसित करने के सपने के साथ हम तो मन से खड़े है| ज्यादा न कहते हुए मैं अपने विचार अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ| आशा है इस अच्छे मिशन में आप सब कंधे से कन्धा मिलकर हमारा साथ देंगे |

कॉलेज के प्रति प्यार और गुरुजनों को प्रणाम किए साथ मैं अपनी बात को समाप्त करता हूँ|




Parth Sarthi
LL.B.-4th Sem,  Faculty of Law, BHU

I am immensely pleased by the acts you are doing, always considered you my younger brother. on the very auspicious day i will like to say that--studying law in BHU away from my Home (Muzaffarpur). I always have grievance in my mind, and pain my heart that you cant I study in my our town, in my our college(L.S.) ?

When BHU and L.S.College both were similarly built, then why one is so well aided by central govt. and the other is overlooked even by the state govt. and the govt. which had built many institution in Bihar and is willing to open Aligarh Muslim University in Kishanganj.

So what is the fault of our L.S.College, whether having such a prestigious past is the fault of this college. Now the time has came, we the youths must put some serious step for the rebirth of our college. 


Madhuranjan
Ex-Student, L.S.College.

L.S.College is one of the indistinguishable part of my life. L.S.College is the dignity of Bihar. There flows a long and tremendous history on this college which is often used to be delivered by great scholars, teachers, leaders and students in their speech and writings. I would like to share some of those. This college has produced so many stars who are brightening this time in different fields of life.

It is the place where i started my college life and it taught me to to differentiate between right and wrong, between darkness and light, between sweetness and bitterness. I have had true love. I specially thank to those who are striving for its glorious future.

"बिहार रत्न" ही नहीं मानव रत्न थे लंगट बाबु



मुजफ्फरपुर की धरती अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक जागृति के अग्रदूतों की धरती रही है जिन्होंने देश की आजादी, सामाजिक परिवर्तन और शैक्षणिक क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जानकी वल्लभ शास्त्री, रामबृक्ष बेनीपुरी, शहीद जुब्बा सहनी जैसे अनेक विभूतियों के नाम से मुजफ्फरपुर व बिहार की प्रतिष्ठा बढती है। ऐसे ही एक महापुरुष थे बाबु लंगट सिंह।


साहस, संकल्प और संघर्ष की बहुआयामी जीवन जीनेेवालें बाबु लंगट सिंह का जन्म आश्विन मास, सन 1851 में धरहरा, वैशाली निवासी अवध बिहारी सिंह के यहाँ हुआ था। निर्धनता का अभिशाप झेलते, जीवन जीने को संघर्ष करते परिवार में जन्म लेने की वजह से लंगट बाबु पढाई नहीं कर पाए। कहा जाता है कि मनुष्य जीवन का विकास जटिल परिस्थितियों में होता है। संघर्ष की अग्नि से ही आतंरिक शक्ति का सच्चा विकास होता है। लंगट बाबु ने भी संघर्ष का रास्ता चुना व 24-25 वर्ष की उम्र में जीविका की तलाश में, घर की आर्थिक सुधारने की संकल्प लिए निकल पड़े घर सेे। काम मिली भी तो, रेल पटरी के साथ साथ बिछाए जा रहे टेलीग्राम के खम्भों पर तार लगाने का। उसके बाद रेलवे के मामूली मजदूर से जमादार बाबु, जिला परिषद्, रेलवे और कलकत्ता नगर निगम के प्रतिष्ठित ठेकेदार बनने की कहानी, आधुनिक फिल्मों की पटकथा से कम नहीं लगती।
              साधारण मजदूर से अपनी कठोर मेहनत, बुद्धि और स्थायी विश्वसनीयता के बल पर अत्यंत दायित्व-संपन्न, सम्मानास्पद ठेकेदार और उदार जमींदार के रूप में स्थापित हो गये थे। जीवन के कई वर्ष उन्होंने कलकत्ता में ठेकेदारी करते हुए बिताये। कलकत्ता के संभ्रांत समाज में उनकी कहीं ऊँची प्रतिष्ठा थी। बंगाली समुदाय से वे इतना घुल-मिल गये थे कि उन्हें लोग शुद्ध बंगाली ही माना करते थे। वे वहां के सभ्य समाज में स्वदेशी आंदोलनों के मंच पर प्रभावशाली आत्मविश्वास से भरी भाषण देते थे। वहा के शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय जागरण की उस फिजां में स्वामी दयानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, ईश्वरचंद विद्यासागर, सर आशुतोष मुखर्जी आदि के स्वर गूंज रहे थे। उस समय प्रसिद्ध युग-निर्माताओं के सतत संपर्क में ही नही थे बाबु साहब, अपितु बहुयामी राष्ट्रिय महत्व के कार्यों से बहुत प्रभावित भी थे और उनसे जुड़े हुए थे। सदियों से मंद पड़ी विद्यानुराग कि वह पवित्र बीज वही कलकत्ता में फूटी और आज एल.एस. कॉलेज के रूप में वटवृक्ष की तरह खड़ी है।
बाबु लंगट सिंह की जीवन-दृष्टि बहुत ही उदार, उदात्त और व्यापक थी। खास कर बिहार में अपनी जीवन-यात्रा के पथ पर पं. मदन मोहन मालवीय जी, महाराजाधिराज दरभंगा, काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह, परमेश्वर नारायण महंथ, द्वारकानाथ महंथ, यदुनंदन शाही, धर्म्भुषन रघुनन्दन चैधरी और जुगेश्वर प्रसाद सिंह जैसे विभिन्न वर्गों के विद्याप्रेमी सज्जनों के साथ जुड़कर शिक्षा का अखंड दीप उन्होंने मुजफ्फरपुर में जलाया था। जब बात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनने की आयी तो उन्होंने एल.एस. कॉलेज के निर्माण कार्य हेतु रखे पैसे दान कर दिए। यही थी उनकी अनोखी, सबों को समेट कर किसी शुभ कार्य को संपन्न करने की विलक्षण जीवन-साधना, दृष्टि और शैली। अद्भुत मेधा के युग-निर्माता, एक कृति पुरुष थे बाबु साहब, जिसका उदहारण मिलना कठिन है अब।
बाबु लंगट सिंह मनुष्य रूप में क्या थे? सद्गुणों के ज्योतिर्मय एक प्रकाश-पिंड! अदम्य उत्साह, अटूट आस्था और ज्वलंत पौरुष के अनुपम प्रतिमान, एक विलक्षण मेधावी और त्याग की मूर्ति, महान मनुष्य!
सचमुच में सिर्फ ष्बिहार रत्नष् ही नही, मानव रत्न थे मुजफ्फरपुर, तिरहुत की धरती के लिए। लंगट बाबु ने धन अर्जित किया तो श्रम से, अच्छे साधनों से, धन खर्च किया ऊँचे उदेश्यों की पूर्ति के लिए, श्रेष्ठतम जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए। आज से सौ वर्ष पहले काशी और कलकत्ता के मध्य गंगा के उत्तरी तट पर तब कोई कॉलेज नहीं था। हाई स्कूलों की संख्या नगण्य थी। तब उस शिक्षा के घोर अन्धकारच्छन्न युग में, ऊँची शिक्षा के लिए, मुजफ्फरपुर में कॉलेज की स्थापना को, पुरे दृढ वुश्वास के साथ चरितार्थ किया। कितने बड़े साहस का काम था कॉलेज खोलने का! यदि यह नहीं हो पता तो लाखों छात्र स्नातक और स्नातोकोत्तर परीक्षाओं  में उतीर्ण हो राष्ट्र की बहुमुखी जीवन-धारा में ऐसी गति दे पाते क्या? कतई संभव नहीं था। ऊँची शिक्षा के प्रसार,  सांस्कृतिक उत्थान और सामाजिक परिवर्तन के लिए बिहार में उनकी जो महत्वपूर्ण भूमिका रही है, वह इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी।


आज उनको दिवंगत हुए १०० वर्ष हो गये, तब भी उनका परोपकार-प्रियता, समग्र समाज की सेवा भावना, शिक्षा-प्रेम, सांस्कृतिक जागरण के प्रति उनकी कठोर प्रतिबद्धतता -उनके जीवन की ये खूबियाँ हमें उस महापुरुष की याद दिलाती है, शुभ कर्मों के लिए प्रेरणा देती है। लंगट बाबु के जीवन की ऊँची नीची घाटियों की यात्रा, कितनी जटिल, श्रमसाध्य और विपत्तियों से बेतरह भरी हुई थी, उसका सम्पूर्ण लेखा-जोखा 15 अप्रैल, 1912 को उनके निधन के साथ ही शून्य में विलीन हो गयी। परन्तु उस साहसिक जीवन-यात्रा, सच्चे उदेश्य के लिए सतत निष्ठापूर्वक श्रम, समाज के लिए उदहारण है। जब भी मुजफ्फरपुर और तिरहुत के इतिहास के पन्ने लिखे जायेंगे वह बिना लंगट बाबु के कभी पूरा नहीं होंगी।

Friday 13 April 2012

लौटने है दुबारा कॉलेज को........

यह सुनने, पढने में बुरा लग सकता है लेकिन यही कॉलेज के  इतिहास के गौरव थे। हमें इसे पुनः दुबारा वापस दिलाने है




दो दशक पूर्व था कारगर, आज इतिहास
मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता : कभी लंगट सिंह कॉलेज के विज्ञान संकाय से लेकर पीजी रसायन विभाग तक की प्रयोगशालाओं में निर्बाध गैस आपूर्ति करने वाला विशाल गैस प्लांट अब सिर्फ अपनी यादें बरकरार रखने की जद्दोजहद में है। यह प्लांट आज भी कॉलेज की गौरव गाथा का मूक गवाह है। देखभाल के अभाव में विशाल यंत्र के कई पा‌र्ट्स तक की चोरी हो चुकी है। लेकिन, प्रशासनिक उदासीनता के कारण बंद हो चुके इस यंत्र के जीर्णोद्धार की चिंता न तो कॉलेज को है और न ही बिहार विश्वविद्यालय प्रशासन को। रसायनशास्त्र के विद्वान शिक्षकों की मानें तो इसके संरक्षित करने पर यह कॉलेज की भावी पीढ़ी व रसायनशास्त्र के छात्रों के लिए दर्शनीय होने के साथ-साथ अध्ययन में भी सहायक हो सकता है। दो दशक पूर्व तक लंगट सिंह कॉलेज को लैब व शोध कार्य के लिए गैस की बाहरी व्यवस्था पर निर्भर नहीं होना पड़ता था। रसायन, जंतुविज्ञान, भौतिकी या फिर बॉटनी विभाग हो या फिर पीजी रसायन विभाग। इन विभागों को कॉलेज में ही फॉर्मेट की गई गैस पाइप के जरिए आपूर्ति की जाती थी। बताया जाता है कि इसके लिए कॉलेज के पिछले हिस्से में 1952 में एक एकड़ में गैस प्लांट की स्थापना की गई थी। उस वक्त इसकी देखरेख का जिम्मा पीएचईडी पर था। विभाग के तीन कर्मी इसके संचालन के लिए हमेशा तैनात रहते थे। उनके लिए परिसर में आवास की व्यवस्था भी की गई। मगर, इन कर्मियों के सेवानिवृत्त होने के बाद विभाग ने हाथ खींच लिया। नतीजतन, धीरे-धीरे इसकी व्यवस्था चरमराने लगी। रसायन विभाग के वरिष्ठ शिक्षक डा. नित्यानंद शर्मा बताते हैं कि देश के गिने-चुने विवि में लंगट सिंह कॉलेज था, जहां लैब के संचालन के लिए अपनी व्यवस्था से गैस का निर्माण किया जाता था। इसके निर्माण की विधि भी बेहतरीन है,जिसमें केरोसीन तेल की क्रैकिंग कर गैस का फॉरमेशन किया जाता था। उनकी मानें तो तत्कालीन प्राचार्य डा.सुखनंदन प्रसाद के समय अंतिम बार इसके जीर्णोद्धार की पहल हुई। प्राचार्य के पत्र पर विवि ने सरकार को इसके कायाकल्प का प्रस्ताव भेजा। लेकिन,इस दिशा में आगे की कार्रवाई न होने पर प्लांट जीर्ण-शीर्ण होते चला गया। चोरी के बाद भी लाखों रुपये के कारगर यंत्र व मशीन आज भी कमरे में सुरक्षित हैं। इसे अच्छे ढंग से संरक्षित किया जाए तो यह भावी पीढ़ी के छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन में काफी सहायक होने के साथ ही कॉलेज के लिए बड़ी धरोहर के रूप में रहेगा।
"गैस प्लांट से रसायनशास्त्र विभाग को फायदा होता था। लेकिन जब से इसका काम बंद हो गया तब से बाहर से गैस खरीद कर काम चलाया जा रहा है। विवि या सरकार द्वारा कोई ठोस पहल नहीं होने के कारण पुनर्जीवित करने का प्रयास कारगर नहीं हो पाया है।"
---- डा. सुनीति पांडेय प्राचार्या, एलएस कॉलेज
"इस गैस प्लांट के बारे में मुझे पूरी तरह जानकारी नहीं है। जल्द ही इसके बारे में जानकारी लेकर उचित पहल की जाएगी।"
-----डा. राजेंद्र मिश्र कुलपति, बीआरए बीयू

Shift of thinking -- पर्यटन स्थल से राष्ट्रिय धरोहर की यात्रा

कुछ भी मुश्किल नहीं, यदि करने की ठान लीजिये......यही हुआ एल.एस. कॉलेज को राष्ट्रिय धरोहर बनाने के मुहीम की शुरुआत में |  कॉलेज को सिर्फ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बातें होती थी, पर्यटन के दृष्टि से कॉलेज सुन्दर बने, रमणीय लगे, कुछ देखने लायक चीज़े हो, इसके लिए पैसे सरकार से मांगे जाते रहे | लेकिन दुखद तथ्य यह था कि पर्यटन स्थल के रूप में कॉलेज जाना जाये, इसमें सिर्फ गाँधी जी तक ही बात जाकर समाप्त हो जाती थी | कॉलेज का समग्रता से विकास हो, इसके इतिहास के गौरवशाली क्षण कि अनुभूति लोग करे, इस हेतु राष्ट्रिय धरोहर की मांग करना कॉलेज की चर्चाओं में एक ऐतिहासिक मोड़ था|  जब हमने राष्ट्रिय धरोहर की बात बुलंदी से, तर्कपूर्ण ढंग से रखी तो सभी के चिंतन-मनन का यह विषय बना की क्या वास्तव में कॉलेज राष्ट्रिय धरोहर बनने का पात्र है?

इससे पहले कॉलेज के बारे अधिक लोग जाने, कॉलेज के इतिहास की चर्चाये हो तो बात सिर्फ गाँधी जी के चंपारण यात्रा की याद से जुड़ी गाँधी-कूप तक ही सिमित हो जाती थी | गाँधी जी का ऐतिहासिक यात्रा के सन्दर्भ में कॉलेज में ठहरना, उनके स्वागत में उमड़ी छात्रों की हुजूम, छात्रों का गाँधी जी की बग्घी अपने कन्धों पर खीचकर लाने का विर्तांत तक ही कॉलेज के ऐतिहासिक महत्व की सारी बातें सिमट जाती थी | लेकिन उस चंपारण यात्रा के सूत्रधार आचार्य जे. बी. कृपलानी, गाँधी जी को कॉलेज हॉस्टल में ठहराने के कारण बर्खास्त विद्वान आचार्य मलकानी को याद करना जरुरत नहीं समझा जाता था | राजेंद्र बाबु का कॉलेज के प्राध्यापक के रूप में आना, प्राचार्य(Principal) बनना, कॉलेज के वर्तमान स्थल का चयन करने की चर्चा कही देखने को नहीं मिलती थी | यह मांग भी नहीं उठाई जाती थी कि रामधारी सिंह दिनकर से जुड़ी यादों को भी सहेजा जाये, उसके बारे में बताया जाये|  कॉलेज कि गरिमा बढ़ाने वाले अनेक संस्मरणों को याद करके उसे एक पुस्तकालय या संग्रहालय का रूप दिया जाये, इसके बारे में कोई प्रयास नहीं  हुआ |

आप देख सकते है कॉलेज प्रशासन ने सिर्फ गाँधी जी का जिक्र किया और महाविद्यालय के जुड़े अन्य महापुरुषों को छोड़ दिया गया |

पर्यटन स्थल बनाने को लेकर कॉलेज प्रशासन द्वारा लिखे गये पत्र
इस पत्र को लिखने के परिणामस्वरूप कॉलेज को 65 लाख रुपये मिले ।

इस सम्बन्ध में "द टेलेग्राफ" अख़बार में छपी खबर  देखा जा सकता है

                                             
Gallery to remember Gandhi’s historic visit



    



Muzaffarpur, Jan. 20: For those who are taken in with Gandhigiri, here is some good news. The state government is all set to establish a new gallery on the Father of the Nation in Langat Singh College, a constituent unit of Bhim Rao Ambedkar Bihar University.
The government has sanctioned Rs 65 lakh for the gallery, named Mahatma Gandhi Memorial Gallery. Tourism department officials inspected the spots of historical importance related to Gandhi in the district recently.
On April 10, 1917, Gandhi had visited Muzaffarpur en route to East Champaran, for the satyagraha there. He also took a bath near a well on the college campus. The well has been named Mahatma Gandhi Kup, and is renovated from time to time.
The historic well will now be fenced and made a part of the historic display, said Suniti Pandey, the principal of the college. A statue of Gandhi was also installed in front of the principal’s office recently. Bhim Rao Ambedkar Bihar University gave the college Rs 1 lakh for the renovation of the statue. Rajendra Prasad installed a bust of Gandhi on the same spot in 1959. Later, in 1971, Jai Prakash Narayan had unveiled a statue of Gandhi on the spot.
The tourism department team also visited Gorakhpur High School on Tilak Maidan Road, where Gandhi had spent a week in 1934 to supervise the relief and rescue operations in the aftermath of a devastating earthquake. The team also visited the houses of J.P. Kripalani and Raj Kumar Shukla, where Gandhi had spent time, in the course of his long political career.
Tourism minister Sunil Kumar, who visited some of the spots today, said: “The government will prepare a roadmap of tourism of the places of historic and religious importance in the state, particularly in north. Tour buses would be started and hotels and restaurants would be constructed along the national highways for the tourists.”  (खबर की लिंक -http://www.telegraphindia.com/1110121/jsp/bihar/story_13469488.jsp)




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आप मीडिया शीर्षक के अंतर्गत डाले पोस्ट में देख सकते है की ३ जुलाई, २०११ को मुजफ्फरपुर से छपने वाले सभी अखबारों ने राष्ट्रिय धरोहर बनाने की मांग की खबरे छापी।

Wednesday 11 April 2012