नयी दिल्ली, 6 जुलाई, 2012| एल.एस.कॉलेज परिसर में
स्थित एन.एन.एस भवन में लगी आग न केवल दुर्भाग्यपूर्ण घटना है बल्कि
एन.एस.एस. से जुड़े कॉलेज के पूर्व व वर्तमान छात्र अत्यंत दुःख का अनुभव
कर रहे है. भवन में टंगी प्रतिभाशाली छात्रों की पेंटिंग, कुछ यादगार
कार्यक्रमों की तस्वीरें और हर वह बात जो राष्ट्रीय सेवा योजना के
स्वयंसेवक के नाते उस भवन में गुजरी, बरबस याद आ जा रही है. उस भवन से
जुड़ी अनेक यादें अब राख हो चुकी है और उन यादों को फिर से जीवंत करना
असंभव हो गया है लेकिन आग लगने की यह घटना कई सवाल भी खड़े करते है, जिसका
जबाब छात्र जरुर जानना चाहेंगे.
हम सभी इस बात से परिचित है कि विगत कुछ वर्षों से कॉलेज में एन.एस.एस का कार्य बिल्कुल ठप पड़ा हुआ है. एन.एस.एस फंड के रहते अनेक वर्षों से शिविर भी आयोजित नहीं हो रहे थे . एन.एस.एस. के वर्षभर आयोजित होनेवाले कार्यक्रम भी नियमित तौर पर नहीं आयोजित हो पा रहे थे. यहाँ तक की एन.एस.एस गतिविधियों में शामिल छात्रों को प्रमाण पत्र भी निर्गत नहीं किये जा रहे थे. अनेक बार ध्यान दिलाने व शिकायत करने के बाबजूद इस दिशा में कोई करवाई नहीं हुई तथा छात्र बिना प्रमाणपत्र लिए हमेशा मायूस होकर चुपचाप कॉलेज से पास आउट होते रहे. 3 वर्ष पहले जब छात्रों ने युवा एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार से बंद पड़ी एन.एस.एस. गतिविधियों के सम्बन्ध में शिकायत की तब विश्वविद्यालय की 3 सदस्यीय जाँच टीम शिकायत का परिक्षण करने कॉलेज आयी थी. समिति ने सारी कुव्यवस्था देखी. कॉलेज प्रशासन के साथ साथ मैं व्यक्तिगत तौर पर छात्रों का पक्ष रखने हेतु मौजूद था. जाँच टीम पारंपरिक रीती रिवाजों को बरक़रार रखते हुए आज तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची और तमाम शिकायतों व जाँच के बाबजूद आज तक कोई करवाई नहीं की जा सकी है. उस समिति में शामिल डॉ. राजेंद्र महतो बाद में कुलपति बने तो मैंने फिर जाकर उनसे आग्रह किया कि "छात्रों की समस्या अपने खुद देखी थी और जाँच भी किया. हमें रिपोर्ट से कोई मतलब नहीं, बस सिर्फ प्रमाण पत्र दिलवा दीजिये." कुछ नहीं हुआ. हुआ यह की महाविद्यालय में एन.एस.एस. चलाने में असमर्थ रहे तत्कालीन पदाधिकारी को विश्वविद्यालय में अधिकारी भी बाद में बना दिया गया.
आज भी अनेक छात्र प्रमाण पत्रों की बाँट जोह रहे है. ऐसे हालात में एन.एस.एस. भवन में आग लगना कही न कही एक सोची समझी रणनीति के तहत की गयी करवाई लगती है. मिली जानकारी के मुताबिक भवन में रखी दोनों अलमारियां जलकर राख हो गयी तथा कुर्सी चोरी कर ली गयी. कुर्सी चोरी करनेवालों को आलमारी से क्या मतलब? अगर चोर को यह लगा भी होगा की आलमारी में कुछ कीमती वस्तुएं होंगी और उसने ताला तोड़कर वह सामान भी निकाल लिए होंगे, फिर आग लगाने की जरुरत क्यूँ पड़ी ? परिसर में मौजूद सुरक्षा कर्मी या रात्रिसेवा में रहने वालें कर्मी कहाँ थे ? कही न कही उपरोक्त प्रश्न उठने स्वाभाविक है . ऐसे में इसे सामान्य घटना समझकर छोड़ देना व्याव्याहरिक तौर पर सही नहीं होगा.
लंगट सिंह महाविद्यालय एन.एस.एस. के पूर्व दलनायक होने के नाते मैं विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग करता हूँ कि एन.एस.एस.भवन में लगी आग की तुरंत न्यायिक जाँच करवाए तथा अविलम्ब दोषियों को पकड़ा जाये. निश्चित तौर पर आग लगने की घटना प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत अंजाम दी गयी घटना है .
हम सभी इस बात से परिचित है कि विगत कुछ वर्षों से कॉलेज में एन.एस.एस का कार्य बिल्कुल ठप पड़ा हुआ है. एन.एस.एस फंड के रहते अनेक वर्षों से शिविर भी आयोजित नहीं हो रहे थे . एन.एस.एस. के वर्षभर आयोजित होनेवाले कार्यक्रम भी नियमित तौर पर नहीं आयोजित हो पा रहे थे. यहाँ तक की एन.एस.एस गतिविधियों में शामिल छात्रों को प्रमाण पत्र भी निर्गत नहीं किये जा रहे थे. अनेक बार ध्यान दिलाने व शिकायत करने के बाबजूद इस दिशा में कोई करवाई नहीं हुई तथा छात्र बिना प्रमाणपत्र लिए हमेशा मायूस होकर चुपचाप कॉलेज से पास आउट होते रहे. 3 वर्ष पहले जब छात्रों ने युवा एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार से बंद पड़ी एन.एस.एस. गतिविधियों के सम्बन्ध में शिकायत की तब विश्वविद्यालय की 3 सदस्यीय जाँच टीम शिकायत का परिक्षण करने कॉलेज आयी थी. समिति ने सारी कुव्यवस्था देखी. कॉलेज प्रशासन के साथ साथ मैं व्यक्तिगत तौर पर छात्रों का पक्ष रखने हेतु मौजूद था. जाँच टीम पारंपरिक रीती रिवाजों को बरक़रार रखते हुए आज तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची और तमाम शिकायतों व जाँच के बाबजूद आज तक कोई करवाई नहीं की जा सकी है. उस समिति में शामिल डॉ. राजेंद्र महतो बाद में कुलपति बने तो मैंने फिर जाकर उनसे आग्रह किया कि "छात्रों की समस्या अपने खुद देखी थी और जाँच भी किया. हमें रिपोर्ट से कोई मतलब नहीं, बस सिर्फ प्रमाण पत्र दिलवा दीजिये." कुछ नहीं हुआ. हुआ यह की महाविद्यालय में एन.एस.एस. चलाने में असमर्थ रहे तत्कालीन पदाधिकारी को विश्वविद्यालय में अधिकारी भी बाद में बना दिया गया.
आज भी अनेक छात्र प्रमाण पत्रों की बाँट जोह रहे है. ऐसे हालात में एन.एस.एस. भवन में आग लगना कही न कही एक सोची समझी रणनीति के तहत की गयी करवाई लगती है. मिली जानकारी के मुताबिक भवन में रखी दोनों अलमारियां जलकर राख हो गयी तथा कुर्सी चोरी कर ली गयी. कुर्सी चोरी करनेवालों को आलमारी से क्या मतलब? अगर चोर को यह लगा भी होगा की आलमारी में कुछ कीमती वस्तुएं होंगी और उसने ताला तोड़कर वह सामान भी निकाल लिए होंगे, फिर आग लगाने की जरुरत क्यूँ पड़ी ? परिसर में मौजूद सुरक्षा कर्मी या रात्रिसेवा में रहने वालें कर्मी कहाँ थे ? कही न कही उपरोक्त प्रश्न उठने स्वाभाविक है . ऐसे में इसे सामान्य घटना समझकर छोड़ देना व्याव्याहरिक तौर पर सही नहीं होगा.
लंगट सिंह महाविद्यालय एन.एस.एस. के पूर्व दलनायक होने के नाते मैं विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग करता हूँ कि एन.एस.एस.भवन में लगी आग की तुरंत न्यायिक जाँच करवाए तथा अविलम्ब दोषियों को पकड़ा जाये. निश्चित तौर पर आग लगने की घटना प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत अंजाम दी गयी घटना है .